गुरुवार, 18 मार्च 2010

चाँद से दूर जबतक रही चाँदनी

व्यर्थ में तान का दो पता न उसे
बांसुरी जिस अधर को बजानी न हो,
उनकी आँखें न आँखें कही जायेंगी
जिनकी आँखों में आँखों का पानी न हो!

हर किसी को लगे सुख के दिन ही भले
आओ स्वागत दुखों का भी करते चलें,
सूख कर ताल होके रहे एक दिन
धार में यदि नदी के रवानी न हो!!

सिल रहे जिंदगी का बिछौना अगर
गाँठ दो डोर के हर नए छोर पर,
एक रचना है लौटी हुयी जिंदगी
प्रेम की जिसमे कोई कहानी न हो!!

चाँद से दूर जबतक रही चाँदनी
बात उसकी ही करती रही अनमनी,
रात को फूल सारे विधुर से लगें
बाग़ में यदि कहीं रातरानी न हो!!


*aseem

सोमवार, 15 मार्च 2010

गुरुवार, 11 मार्च 2010

स्वप्न बदल जाते हैं

समय के साथ-साथ
स्वप्न बदल जाते हैं!!

कुँआरी आँखों में
नहीं आता
घोड़े पर चढ़ा कोई राजकुमार,
"जो ला सके आसमान के तारे"

अब तो
कुँआरी आँखों में आता है
दिनोदिन पियारता माँ का चेहरा
और लाल होती खुद की हथेली,
दिनों दिन सूनी होती बाप की आँखें
बढती झुर्रियां / बढ़ता क़र्ज़
और भी
जाने कितनी कसमसाहट के बीच
लाल होती कुँआरी मांग
जिसके साथ एक भी मधुर अहसास
जाग नहीं पाते
क्यूंकि-
समय के साथ-साथ
स्वप्न जो बदल जाते हैं


*aseem

बुधवार, 10 मार्च 2010

मंगलवार, 9 मार्च 2010

बग़दाद की बेटी

चार बेटे
दो भाई
अम्मी अब्बू,

एक अदद मकान
चूल्हा -चिमटा

दरवाजे की क्यारी की बेला
एक दुधमुही बच्ची !!

सब खो गए....

"बहुत मुश्किल है बग़दाद की बेटी होना"


*असीम

"बाद मेरे मरने के"!

तथा कथित मेरे अपनों!
इस घर के अन्दर मेरी कोई तस्वीर
मत लगाना
"बाद मेरे मरने के"!

मत याद करना
मेरा तिल-तिल कर
रोज-रोज मरना,

हाँ... याद कर लेना
उस किसी एक भी जीवित क्षण को
जिसे जिया हो हमने
पूरे होशो हवाश के साथ!

मेरी उपलब्धियों/अनुपलब्धियों
मेरे स्वाभिमान/ मेरी विवस्ताओं से सम्बंधित
कोई भी चर्चा मत करना
बीच अपनों के!


मेरे स्वप्नों को भी विस्तार मत देना
बाद मेरे मरने के/ क्योकि
मैंने जो भी सपने देखे थे
अपनी निज की आँखों से देखे थे,

इसलिए/ इन्हें साकार देखने का
अधिकार भी इन्हें ही है
तथा कथित मेरे अपनों!


कम से कम मेरी निजता का तो
अधिकार मत छीनना
मिट जाने देना मेरी निजता को/मेरे ही साथ
जिसे-
तुमने सोचा था/ करने को
"बाद मेरे मरने के"!! 


*aseem