व्यर्थ में तान का दो पता न उसे
बांसुरी जिस अधर को बजानी न हो,
उनकी आँखें न आँखें कही जायेंगी
जिनकी आँखों में आँखों का पानी न हो!
हर किसी को लगे सुख के दिन ही भले
आओ स्वागत दुखों का भी करते चलें,
सूख कर ताल होके रहे एक दिन
धार में यदि नदी के रवानी न हो!!
सिल रहे जिंदगी का बिछौना अगर
गाँठ दो डोर के हर नए छोर पर,
एक रचना है लौटी हुयी जिंदगी
प्रेम की जिसमे कोई कहानी न हो!!
चाँद से दूर जबतक रही चाँदनी
बात उसकी ही करती रही अनमनी,
रात को फूल सारे विधुर से लगें
बाग़ में यदि कहीं रातरानी न हो!!
*aseem
बांसुरी जिस अधर को बजानी न हो,
उनकी आँखें न आँखें कही जायेंगी
जिनकी आँखों में आँखों का पानी न हो!
हर किसी को लगे सुख के दिन ही भले
आओ स्वागत दुखों का भी करते चलें,
सूख कर ताल होके रहे एक दिन
धार में यदि नदी के रवानी न हो!!
सिल रहे जिंदगी का बिछौना अगर
गाँठ दो डोर के हर नए छोर पर,
एक रचना है लौटी हुयी जिंदगी
प्रेम की जिसमे कोई कहानी न हो!!
चाँद से दूर जबतक रही चाँदनी
बात उसकी ही करती रही अनमनी,
रात को फूल सारे विधुर से लगें
बाग़ में यदि कहीं रातरानी न हो!!
*aseem